by Jyoti Tyagi
कोविद -19 महामारी ने न केवल आश्चर्यजनक रूप से कलाकारों को प्रभावित किया है, बल्कि दुनिया भर में कला-संबंधित गतिविधियों और घटनाओं को भी प्रभावित किया है। लंबे समय तक लॉकडाउन के बाद नई दिल्ली के सर्वोदय एन्क्लेव में स्थित‘थ्रेसहोल्ड‘ कला दीर्घा ने हाल ही में ‘घोंसला’ नामक एक प्रदर्शनी आयोजित की है। जो कि प्रसिद्ध कला समीक्षक, कवि, अनुवादक एवं संपादक, प्रयाग शुक्ल और “थ्रेसहोल्ड” कला दीर्घा की निर्देशक एवं कला क्यूरेटर टुंटी चौहान द्वारा संयुक्त रूप से क्यूरेट की गयी है।
At the exhibition opening, from left to right: Tunty Chauhan, Manisha Gera Baswani, Prayag Shukla
गत वर्षों में टुंटी चौहान के संचालन द्वारा गैलरी ने कला समुदाय और कला प्रेमियों के लिए चुनिंदा और ध्यान केंद्रित कराने वाली अर्थपूर्ण प्रदर्शनियाँ आयोजित कर कलाजगत में असाधारण सेवा दी है। टुंटी चौहान के अनुसार इस प्रदर्शनी के लिए सभी कार्य विशेष रूप से बनाए गये हैं।शीर्षक श्री प्रयाग शुक्ल जी द्वारा सुझाया गया था। प्रदर्शनी की विषय योजना कोविड-१९ महामारी की शुरुआत होने से पहले ही बन चुकी थी। इस विशेष समूह प्रदर्शनी के लिए प्रशंसित कलाकारों को घोंसले से जुड़े गहरे ज्ञान को समझने के लिए आमंत्रित किया गया था।क्यूरेटर के अनुसार:
“घोंसले” का संबंध भौतिक एवं आध्यात्मिक तत्वों से है। हालांकि घोंसला और घोंसला बनाने का कार्य अधिकांशतः पक्षियों से सम्बंधित है, यह न केवल भौतिक वस्तु सामग्री की संरचना है अपितु सामाजिक और भावनात्मक संबंधों द्वारा बना एक बंधन भी है।
प्रदर्शनी के सिलसिले में हुई प्रयाग शुक्ल जी से बातचीत के दौरान उन्होंने घोंसला शब्द की भिन्न-भिन्न व्याखाएँ बतायीं। प्रयाग जी के अनुसार:
इस शो के लिए उठा विचार केवल घर के वास्तुशिल्प संरचना पर ही नहीं अपितु हमारा विचार घर में रहने के अनुभव को महसूस करने, इससे जुड़ी भावनायें व आध्यात्मिक अहसास से भी जुड़ा था। शुक्ल जी अनुसार ‘घोंसला’ एक आश्रय, आराम करने की जगह ,सुरक्षा और स्वतंत्रता का प्रतीक है। यह हम सभी के कार्यस्थल से, यात्रा से, कहीं बाहर से आने की वो जगह भी है, जहाँ पहुँचकर हमें एक सुकून का अहसास होता है। घर हमें हमारी पहचान, पता, अपनापन और एक ऊँचाई देता है। ये सिर्फ़ इंसान की ही आवश्यकता नहीं अपितु पशु, पक्षी, जीव, जंतु के लिए भी उतनी ही सवेंदनशील जगह भी है।
कोविड १९ महामारी के दौरान ‘घर’ के मूल्य के प्रति भावनायें हम सभी में और अधिक प्रबल हो गयी है। लॉकडाउन के दौरान हज़ारों लोगों की पैदल व साईकिल जैसे साधनों द्वारा अपने प्रियजनों के पास व घर पहुचनें की घटनाओं ने सभी को झकझोर दिया था। कलाकारों ने अपनी कला के माध्यम से अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। मेरे लिए लगभग एक साल की महामारी के बाद एक आर्ट गैलरी में घूमना एक सुखद अनुभूति का अहसास था।प्रत्येक कलाकृति को गैलरी में उचित स्थान दिया गया था। जिससे दर्शकों का ध्यान व कलाकृति से संवाद स्थापित करने की उत्सुकता स्वतः ही बढ़ जाती है। अपनी गहरी समझ और अनुभव के साथ, टुंटी चौहान ने अमूर्तकला व मूर्तकला कृतियों के बीच अपेक्षित संतुलन रखते हुए आकर्षक डिस्प्ले किया है। यह किसी प्रदर्शनी के लिए क्युरेटर की कला के प्रति गंभीरता व संजीदगी को स्पष्ट रूप से दिखाती है।
प्रतिभागी कलाकार -
अनंदिता भट्टाचार्य, जयश्री चक्रवर्ती, नीलिमा शेख़, पंडित ख़ैरनार, सुधीर पटवर्धन, मनीषा गेरा बासवानी, पूजा ईराना, सुनीत घिल्डीयाल, राजेंद्र टिकू, यशवंत देशमुख
कला समीक्षा को लेकर हमेशा एक प्रश्न मेरे ज़हन में उठता है कि क्या कला को शब्दों में बांधकर हम कला के प्रति और रचना के प्रति न्याय कर पाते हैं।कलाकार का चिंतन जगत बहुत ही निराला है, वहाँ कदम रख पाना बहुत कठिन है। दर्शक कला में भिन्न -भिन्न अर्थ खोजते हैं जो शायद कलाकार की एक ओर उपलब्धि है। जैसा प्रदर्शनी में देखा गया है कि कलाकारों ने अपनी कलात्मक प्रेरणा से प्रेरित हो अपने विचारों को आकार दिया है।
कलाकार की इस मन:स्थिति के विचार ने निम्नलिखित पंक्तियों को कलमबद्ध करने के लिए मुझे प्रेरित किया -
“कभी अंतर्मन के कोने से निकलीं”
कभी अंतर्मन के कोने से निकलीं, कुछ धुंधली सी, अनजानी सी उभरती रेखांएँ , जैसे संवाद रंगों से करने को हैं आतुर, है जीवन अनुभूति से इनका सरोकार ।
कभी अंतर्मन के कोने से निकलीं ये रेखाएँ, चित्रफलक पर जब अपना अस्तित्व हैं पातीं, विचारों से बनी आकृति पर अब ये हैं ईठलातीं, कर संवाद कभी भावविह्वल मुझे कर जातीं ।
कभी अंतर्मन के कोने से निकलीं ये रेखायें ।
– ज्योति त्यागी
अनंदिता भट्टाचार्य के लघुचित्रों की श्रंखला में एक अनोखी कलात्मक अभिव्यक्ति है। कलाकार की कृतियों में प्रतिमानों का समावेष पहली नज़र में ही समझ आ जाता है, जो सूक्ष्मता व कलात्मकता के साथ किया गया है। कलाकार की रचनाएँ जीवजंतु और वनस्पति का आपसी तानाबाना दर्शाती हैं। मटमैले रंग रेत, मिट्टी में बने उसके धरौदे की तरफ ध्यान खिंचते हैं। वनस्पति जीव-जंतुओं की अद्भुत दुनिया का सुंदर चित्रण होने के साथ-साथ कलाकृतियों को बहुत सहनशीलता व सूक्ष्मता से बनाया गया है । अनंदिता की रचनाओं में वनस्पति व जीवजंतुओ की बाह्राआकृति से संतुष्ट न होकर उन्हें अंतस से देखने की उनकी उत्सुकता भी दिखाई देती है। दूसरी तरफ रंगो की पुनरवृत्ति से कलाकार ने एकरसता की ओर खींचा हुआ है। उम्मीद है आगामी रचनाओं में कुछ नये रंगो के प्रयोगों को देखने का अवसर मिलेगा।
In a Grain of Sand… by Anindita Bhattacharya, Gouache and natural pigments on paper
(suite of 28 works), variable dimensions 7 inches x 5 inches each approx, 2020
जयश्री चक्रवर्ती ने विषय को बहुस्तरीय शैली में चित्रित किया है। कलाकार‘घर’शीर्षक को प्रकृति में निहित तत्वों में खोजता प्रतीत हो रहा है।कपास, जुट, कागज, पेड़ की पत्तियाँ, चाय के रंग , तैलीय रंग जैसी सामग्रियाँ माध्यम के रूप में कैनवास पर प्रयुक्त की गयीं हैं।जो पक्षियों के घोंसले और फैली हुई जड़ों में कीड़े-मकौड़ों के घर होने का आभास भी दिलाती है।
निश्चित तौर पर रचना काल्पनिक लोक से नहीं अपितु प्रकृति के प्रति लगाव, संवेदनशीलता और उसके सूक्ष्म अवलोकन से जुड़ी है।जब रंगो की मोटी परतें कहीं वास्तविक पेड़ की जड़ों जैसा भ्रम पैदा करती हैं तब ये उनके सूक्ष्म अवलोकन की ओर ही इशारा करती हैं। चक्रवर्ती ने प्रकृति के भिन्न - भिन्न स्वरूप को कला के माध्यम से व ख़ूबसूरती से लोगो तक पहुंचाया है, जो सराहनीय है।
Expanded Roots by Jayashree Chakravarty, Oil, acrylic, jute, cotton, paper, and tea stains on canvas,
50 inches x 69 inches, 2019
पंडित खैरनार एक ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने भावनात्मक और वैचारिक दोनों स्तरों पर घोंसले के अर्थ में गहरा बदलाव किया है। पंडित खैरनार ने प्रदर्शनी के शीर्षक‘घोंसला’को अपनी कल्पनाओं में अनोखा रूप दिया है। खैरनार मानते है कि“घर एक वो जगह है जहाँ बचपन, और जीवन की तमाम यादें रहती है जिनको हम हमेशा अपने अंदर समेटे रहते हैं।" जलरंगों में किया गया उनका प्रत्येक काम एक संतुलित रचना है। रंग क्षेत्र के चित्रकार के रूप में पहचाने जाने वाले पंडित खैरनार की कला रचनाओ का माध्यम जलरंग है। उनकी रचनाओं मे परत दर परत चढ़े हुए रंग नये रोमांच की अनुभूति कराते हैं। खैरनार की चित्ररचना में हल्के रंगो की पृष्ठभूमि पर गहरे रंग की ठोस वर्गाकृति का चित्रण, घर की काल्पनिक संरचना की अभिव्यक्ति हो सकती है, जिसमें हल्के रंग के विभिन्न वर्ण परत दर परत उसमें समाकर (पारस्परिक सम्बन्धों की तरह) घर के अर्थ को सार्थक कर रहे हैं। दूसरी ओर गहरे और हल्के रंगो का संतुलित प्रयोग जीवन के प्रति आशावादी होने का संदेश भी देता प्रतीत हो रहा है। खैरनार की कलाकृतियों को देखना एक अद्भुत दुनिया का विचरण करने जैसा अनुभव है।
Gallery view of Pandit Khairnar's works
Untitled by Pandit Khairnar, Watercolour on paper, 11 inches x 11 inches, 2021
कलाकार सुधीर पटवर्धन के चित्र हमेशा लोगो के बारे में रहे हैं। शहरीकरण, सड़क जीवन, घरेलू दृश्य, रोजमर्रा के जीवन की हलचल उनके विषय रहे हैं। कलाकार ने हमेशा परिवर्तित सामाजिक परिस्थितियों को प्रस्तुत किया है। पटवर्धन ने बहुत गंभीरता और कुशलता से प्रदर्शनी के शीर्षक ‘घोंसला’को सही मायने में समझकर चित्रित किया है। कलाकार ने घर को एक आराम करने व क़ाम करने की एक एकांत जगह के रूप में चित्रित किया है। अपनी कौशलता से उन्होंने रचनाओं में एकान्त घोंसले के सही अर्थ को पकड़ा है। दूसरी कृति में स्केच बुक पर स्वयं की उकेरते हुए छवि उनके गहन मनोदशा की अभिव्यक्ति है। पटवर्धन ने परिस्थिति के सूक्ष्म अवलोकन में महारथ हासिल की है। कलाकार का हौसला या कौशल ही कहा जा सकता है जिसने अकेली बैठी महिला के सन्नाटे को सपाट रंग की पृष्ठभूमि पर उसकी छाया डालकर तोड़ा है। पेस्टल में बनी कृति भविष्य की चिंता व अतीत की स्मृतियों में बैठे व्यक्ति की अच्छी अभिव्यक्ति है । पटवर्धन के रंग स्पष्ट और सतह के साथ जुड़े होने की प्रवृत्ति का सुझाव देता है। दर्शकों का रचनाओं के साथ संवाद स्थापित होना लाज़मी है।
Gallery view of Sudhir Patwardhan's works
Morning by Sudhir Patwardhan, Acrylic and oil on canvas, 34 inches x 43 inches, 2020
Afternoon by Sudhir Patwardhan, Acrylic and oil on canvas, 27 inches x 18 inches, 2020
Evening by Sudhir Patwardhan, Pastel on handmade paper, 27 inches x 21 inches, 2020
मूलरूप से उत्तराखंड के सुनीत गिल्डियाल ने प्रदर्शनी के शीर्षक ‘घोंसला’ को जीवन और समय एक निरन्तर यात्रा के साथ जोड़ कर अमूर्त रूप में अभिव्यक्त किया है।सुनीत के शब्दो में, “प्रकृति और जीवन के बिना घर का कोई अर्थ नही हो सकता”।
कोविड -19 ने इंसान की प्रकृति के प्रति बेरुख़ी और क्रूरता से हुई उसकी तबाही और बर्बादी को भी दर्शाया है। उनके चित्रण में प्रकृति का अनूठा चित्रण है। लघु फलक पर मिश्रित रंगो के माध्यम से नवीन अमूर्त आकारों की खोज बखूबी दिखाई पड़ती है। पहाड़ी क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य का प्रभाव उनके मनमस्तिष्क पर हरे ,पीले और भूरे रंगो के द्वारा आकर्षक रूप में चित्रित हुआ है। रंगों का पदक्रम बहुत संतुलित है जिसको कम या अधिक करके संतुलन के विषय में सोचा नहीं जा सकता है। दूसरी तरफ़ सुनीत ने चित्र रचना में फलक को सरल स्पष्ट रेखा से विभाजित करके एक़ कठोर किनार खींच दी है फिर भी अग्रभूमि और पृष्ठभूमि में परस्पर तालमेल बना हुआ है। कृतियों में एक लय है। सुंदर रंग-संगति एवं प्रभावपूर्ण कुशल संयोजन से चित्रों में आकर्षण बना हुआ है।
Gallery view of Sunit Ghildial's works
एक कलाकार की दार्शनिक दुनिया अकसर चमत्कारिक होती है और एक ऐसी गुणवत्ता से भरी होती है जो आसानी से प्राप्त नहीं होती है। इसलिए हम कलाकार की कृतियों की कई तरीकों से व्याख्या करते हैं। प्रकृति के आशीर्वाद से भरा घर आज के समय में अशांत अवस्था से गुज़र रहा है।
Time & Life Series by Suneet Ghildial, Mixed media on canvas, 12 inches x 12 inches each, 2020
Time & Life Series (detail) by Suneet Ghildial, Mixed media on canvas, 12 inches x 12 inches each, 2020
मनीषा गेरा बासवानी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से भटके पंखों को एक अनजान व काल्पनिक जगह ले जाने की कोशिश की है। जलरंगों में बने चित्र, पिन द्वारा उकेरे हुए पंख व पृष्ठभूमि ने तीन तत्वों के समान मिलकर परिवेश में सदभावना व समानता के संदेश को अभिव्यक्त किया है। बासवानी द्वारा काले और सफेद रंग का चयन जीवन में संतुलन और सामंजस्य के महत्व को भी दर्शाता है।
Hope is a Thing with Feathers I (front) and II ( back) by Manisha Gera Baswani,
Pin incisions on paper, 81 inches x 45 inches, 2020-21
आज के समय में प्रकृति की अनदेखी व उसके दुरुपयोग से आए दुष्प्रभावों ने पक्षियों के आवास को भी प्रभावित किया है। दूसरी तरफ़ इंसान के जीवन व उसकी गति भी प्रभावित हुई है। पंख को गति का सूचक भी कहा जाता है। पारम्परिक तरीक़े से हटकर व्रह्रदाकार कृतियों में पिन के माध्यम से पंखों की लयबद्ध तरीक़े से उकेरी हुई रचनाएँ अदभुत है।
Hope is a Thing with Feathers II (detail) by Manisha Gera Baswani,
Pin incisions on paper, 81 inches x 45 inches, 2020-21
नीलिमा शेख़ समकालीन जीवन के बारे में रचना करती रही हैं। अपनी रचना से दर्शकों को चिन्तन के लिए हमेशा मजबूर करने वाली कलाकार ने इस प्रदर्शनी के शीर्षक‘घर’को भी उतनी है संवेदनशीलता के साथ अभिव्यक्त किया है। नीलिमा शेख़ कोविड -19 के समय की सबसे बड़ी त्रासदी को दर्शाती है: प्रवासियों की समस्या, इंसान का अपने घरों से दूर होने पर उनकी मन:स्थिति के चित्रण के साथ-साथ, वनस्पति और जानवर का दर्द भी कलाकार की रचना में चित्रित है।
अपनी अनूठी लघुत्तम शैली में स्पष्टता और मार्मिकता के साथ अपने विचारों को दर्शाती हैं। नीलिमा शेख़ ने पात्रों की लघुत्तम (मिनिमल) छवि को उकेरा है, फिर भी चित्रण स्पष्टता के साथ आपनी बात कहता है। रचना में सांझी (पेपर स्टेंसिल) का प्रयोग बहुत संतुलित है जो नीलिमा शेख़ की अपनी शैली भी है। दूसरे चित्र में विस्थापन का मार्मिक दर्द अभिव्यक्त किया गया दिखता है। कलाकार की कृतियों में अप्रवासियों की समस्या के रूपक व प्रतीक विद्यमान हैं। उनके गहन कामों में रंगसंगति और अभिव्यक्तियाँ उन लोगों के पसीने और श्रम को दर्शाती हैं जो अपने कंधों पर प्रतिष्ठित समाज का बोझ ढोते हैं, जबकि वे स्वयं विस्थापित और बेघर रहते हैं। सांगानेर काग़ज़ पर टेम्परा द्वारा नरम/मुलायम रंग संगति और एक निश्चितमात्रा का धुंधलापन बहुत सादगी से किया गया है। चित्रों में मिनिमल छवियाँ दर्शकों को फिर से पलट कर देखने के लिए उकसाती हैं।
Dreaming home 2 by Nilima Sheikh, Mixed tempera on Sanganer paper, 19.5 inches x 27 inches, 2020
Dreaming home 3 by Nilima Sheikh, Mixed tempera on Sanganer paper, 19.5 inches x 27 inches, 2020
Erased homes 5 by Nilima Sheikh, Mixed tempera on Sanganer paper, 16.5 inches x 25 inches, 2020
समकालीन मूर्तिकला का उद्देश्य भावनात्मक अभिव्यक्ति को भौतिक रूप देना है। राजेन्द्र टिकू की कल्पनाशीलता के साथ रची गई रचना में घर का एक भावनात्मक पहलू दिखता है। राजेन्द्र टिकू के अनुसार ‘’घर आपसी बंधन से बनता है। घर के सदस्यों व उससे जुड़ी हर चीज़ के साथ पारस्परिक संबंध ही घर का निर्माण करता है‘’।
कलाकार की कृति में पत्थरों का रस्सी से बँधा होना उसी बंधन व जुड़ाव की ओर इशारा करता है। सुनहरी परत चढ़ी धातु सकारत्मकता का संदेश कहा जा सकता है। जबकि कलाकार ने रचनाओं में संकेतों और प्रतीकों के प्रयोग करके दर्शकों को रचनाओं पर अपनी व्यक्तिगत धारणाओं और व्याख्याओं को करने की अनुमति दी है, रचनाओं में संतुलन और सामंजस्य स्थापित हैं।
कलाकार की दूसरी कृति में धागे और टहनियों का आपस में बँधा होना भी इसी विषय को अभिव्यक्त करता है। मिश्रित माध्यमों का उपयोग और उनकी सरल व स्पष्ट कार्य प्रणाली अमिट छाप छोड़ती है।
चित्ररचना में घर की लघुआकृति को उकेरकर व चित्रफलक पर दिखता सफ़ेद रंग अनुकूल परिस्थितियों का सूचक दिखता है। वहीं दूसरी रचना में काले रंग और गिरे हुए घर की छवि द्वारा चारों तरफ फैली नकारात्मक परिस्थितियों के कारण हुए‘घर’(पारस्परिक संबंध) के नुकसान को बहुत सरलता से अभिव्यक्त किया है। अमूर्त रूप में प्रभावशाली व प्रशंसनीय अभिव्यक्ति है।
Gallery view of Rajendra Tiku's works
(Left) Then some said that now we came in the line of Black Snow by Rajendar Tiku, Dry pastel, acrylic colour and pencils on Bhutanese handmade paper (Diptych), 27 inches x 21 Inches (framed), 2020
(Right) Then some said that now we came in the line of Black Snow by Rajendar Tiku, Dry pastel, acrylic colour and pencils on Bhutanese handmade paper (Diptych), 27 inches x 21 Inches (framed), 2020
जिस्म ऐसा मक़ान है जिसमें, रहने वाला नज़र नहीं आता. . . (Aasi) by Rajendar Tiku, 2020
(translation - Body is a house whose resident cannot be seen)
Cured twigs, thread, acrylic colour and pencil on Bhutanese handmade paper,
27 inches x 21 inches x 2 inches (photograph courtesy of Aakshat Sinha)
Including a crescent moon many things had I to put together to give this place
the semblance of a house . . . home still eluded by Rajendar Tiku,
Sandstone, gold gilded silver and jute rope,
8 inches x 6inches x 4 inches, 2019 (photograph courtesy of Aakshat Sinha)
प्रदर्शनी में यशवंत देशमुख की कृतियाँ घर की प्रतीकात्मक छवि को दर्शाती हैं। कलाकार की रचना ‘city space’ में हमारे चारों तरफ़ हो रहे शहरीकरण का चित्रण है। कैनवास के मध्य भाग में काले रंग के माध्यम से वहाँ की बढ़ती जनसंख्या और उससे उत्पन्न हुई समस्याओं की ओर ईशारा हो सकता है, वहीं उसके अग्रभाग पर कोणीय आकार में ग्रामीण परिवेश का चित्रित खुला घर शांति का आभास कराता है। देशमुख की "होमलैंड" नामक एक अन्य रचना में नारंगी रंग से रोशनी का संकेत दर्शाया है जो चूल्हा और घर की गर्मी का प्रतीक है जिसे बुझाया नहीं जा सकता। कैनवास पर घर ग्रेफाइट पेंसिल से बना है इसकी अग्रभूमि पर पीला रंग सकारात्मक ऊर्जा देता है। लगभग सभी कार्य कैनवास पर पेंसिल और एक्रिलिक रंगों के माध्यम से किए गए हैं ।देशमुख की रचनाओं में ग्रे रंगों का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
Gallery view of Yashwant Deshmukh's works
City scape by Yashwant Deshmukh, Acrylic on canvas, 36 inches x 48 inches, 2017
Home - Land by Yashwant Deshmukh, Acrylics, graphite on canvas, 27 inches x 48 inches, 2020
Untitled by Yashwant Deshmukh, Pencil and acrylics on canvas, 20 inches x 14.5 inches, 2016
पूजा ईराना ने अपनी कलाकृतियों में तेजी से हो रहे शहरीकरण और इसके अनियोजित तरीक़े को दर्शाया है। पूजा के अनुसार,"विकास, नवीकरण और समृद्धि की इच्छा के लिए हम न केवल अपने संसाधनों को कम कर रहे हैं।, बल्कि मानव अस्तित्व और प्रकृति के नुकसान की भी अनदेखी कर रहे हैं।” उनकी रचनाएँ शहरीकरण की आवश्यकता और इस विकास के उद्देश्य पर सवाल उठाती हैं। पूजा बताती है कि" बहु-मंजिला इमारतें आर्थिक वर्गीकरण द्वारा उत्पन्न सामाजिक श्रेणी को भी विभाजित करती हैं”।
Gallery view of Yashwant Deshmukh's works
And time passed by 2 by Pooja Iranna, Ink on paper (set of 5 works), 6 inches x 8 inches, 2020
कागज पर स्याही के माध्यम से बहुत सूक्ष्म शहरीकरण की छवि सराहनीय है। मानव रहित कंक्रीट जंगल इसकी आवश्यकता पर एक कड़ा प्रहार है। वे अपने आसपास की चीजों के माध्यम से प्रतिक्रिया करने की आवश्यकता महसूस करती हैं जो हमारे साथ जुड़ी हुई हैं लेकिन हम सभी उन्हें अनदेखा कर रहे हैं। उसकी रचनाओं के माध्यम से हम कलाकार की घर के प्रति अवधारणा को देख सकते हैं। ईराना ने खाली पड़ी लंबी, गगनचुंबी ईमारतों की मूर्तियां व बढ़ती हुई ताकतें जो शहरी परिदृश्य की एक विशेषता बन गई हैं को अभिव्यक्त किया है ।
From left to right: Pervasive Mushrooming 11, 12 and 13 by Pooja Iranna,
Staple pins and cement, 11 inches x 8 inches x 3.5 inches, 2020
रोज़मर्रा के जीवन में इस्तेमाल होने वाले मजबूत स्टेपल पिन और सीमेंट का प्रयोग ईराना ने बहुत प्रभावशाली तरीक़े से किया है। रचनाओं का चित्रण अपनी मूल शैली में सावधानीपूर्वक और सुनियोजित तरीक़े से किया गया है। पूजा ईराना का कलात्मक प्रतिपादन एक उल्लेखनीय विशेषता है। रचनाएँ शहरीकरण की आवश्यकता पर उठे सवाल पर सोचने को मजबूर करती हैं। क्या यह हमारी ज़रूरत थी? क्या इससे बचा भी जा सकता था?
मेरा व्यक्तिगत दृष्टिकोण पर्याप्त नहीं है, हम सभी को भी पूजा ईराना के कामों में चित्रित समस्या को समझना चाहिए।
संपूर्ण प्रदर्शनी को देखने से हमें घोंसले के विषय की विभिन्न बारीक व्याख्याओं, कल्पनाओं और उनकी अभिव्यक्तीयों को समझने का मौक़ा मिला। हम इन प्रदर्शित अर्थपूर्ण व प्रभावशाली कलाकृतियों से तुरंत जुड़ जाते हैं जो हमारी पूर्ण चेतना को तो बढ़ाती ही हैं साथ ही साथ मानवता को एक आशा प्रदान करती हैं। कलाकारों और क्यूरेटरों का सहयोगात्मक प्रयास प्रशंसनीय हैं।
21 अप्रैल 2021 तक खुले रहने वाले इस शो को देखने के लिए हम गैलरी की यात्रा की दी दृढ़ सलाह देते हैं।
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(All images courtesy of Jyoti Tyagi, Threshold art gallery and the respective artists, unless mentioned otherwise)
Jyoti Tyagi is a contemporary artist and poet.
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